आरती जलाने के अलावा और भी गुण हैं कपूर में
प्रेमपाल शर्मा
कपूर, कर्पूर या अंग्रेजी में कैंफोर के नाम से भारत में शायद ही कोई अपरिचित होगा। और कोई इस्तेमाल हो या न हो मगर लोगों के घरों के पूजा स्थल पर तो इसकी अनिवार्य उपस्थिति होती है। आमतौर पर इसकी ज्वलनशील प्रकृति के कारण आरती जलाने के समय इसका उपयोग किया जाता है। मगर आज हम आपको बताने जा रहे हैं कपूर के औषधीय गुणों के बारे में जिनके बारे में अधिकांश लोग निश्चित रूप से नहीं जानते हैं।
परिचय
कपूर एक सुंदर और सदाहरित बड़े वृक्ष से पाया जाता है। इसके पत्ते अरोमिल, लंबाई की अपेक्षा चौड़ाई कम, लंबोतरे एवं नोकदार होते हैं। पुष्प मंजरी कक्षीय, पतली, अरोमिल तथा बहुत सारे पुष्पवाली होती है। फल एकबीजी, गूदा नाममात्र का, वर्तुल व्यास में 5 से 10 मिलीमीटर के तथा पकने पर काले हो जाते हैं। पुष्पवृंत लंबा और मजबूत होता है। ये मूलत: चीन और जापान का मूलवासी है मगर अब भारत में बहुतायत में उगाया जाता है। भारत में इसकी खेती दक्षिणी राज्यों के अलावा उत्तराखंड के निचले पहाड़ी क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल के कोलकाता के आस-पास बड़े पैमाने पर होती है। समुद्र तल से 1500 से 2000 मीटर की ऊंचाई इसके लिए आदर्श मानी जाती है। अच्छी जिजीविषा के कारण ये 110 से 260 सेंटीमीटर तक की बारिश को झेल जाता है। वैसे कम बारिश वाले स्थान में भी ये आसानी से उग जाता है।
गुणधर्म
आयुर्वेदिक चिकित्सकों की दृष्टि में कपूर लघु, तीक्ष्ण, रस में तिक्त, कुछ मधुर होने के कारण कफ-वात नाशक, वीर्य वर्धक, विपाक में मधुरयुक्त कटु होने के कारण पित्त एवं तृष्णाशामक, दीपक, ज्वरघ्न, स्वेदजनक, कासहर, नेत्रों के लिए लाभदायक, दाहशामक, मुख की विरसता, रक्तपित्त, आक्षेपवात, आध्मान आदि एवं उदर रोग, कंठ रोग, मूत्रकृष्छू तथा वेदनानाशक है। इसमें कुछ लेखन गुण होने के कारण यह मेद एवं विषदोषनाशक भी है। अल्प मात्रा में यह कामोत्तेजक भी है। मस्तिष्क, हृदय एवं श्वसन के लिए भी यह उत्तेजक है।
इसके पत्तों से 2-3 प्रतिशत तेल निकलता है जो उड़नशील होता है। इसके बीजों में 38.8 फीसदी वसा यानी फैट होता है। खास बात ये है कि बाजार में हमें जो कपूर मिलता है वो न तो पत्तों और न ही बीज से बनता है बल्कि कपूर के पेड़ के तने से निकलने वाले रस को जमाकर वो कपूर तैयार किया जाता है जो अत्यधिक ज्वलनशील होता है।
औषधीय उपयोग: आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्रों में कर्पूर के अनूक चिकित्सीय उपयोग बताए गए हैं। कपूर का तेल आमवात में दुखते अंगों पर मला जाता है। यह आर्तवप्रवर्तक एवं गर्भस्रावक है।
अजीर्णनाशक:12 ग्राम सेंधा नमक, 2 ग्राम शुद्ध कपूर तथा 50 ग्राम भुनी हुई अजवाइन का चूर्ण बनाकर रख लें। अजीर्णवाले रोगी इसमें से आधा चम्मच चूर्ण सुबह शाम ताजा पानी के साथ सेवन किया करें। इसके सेवन से अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।
पेट दर्द/उदर शूल: पेट में अपानवायु ठीक से न घूमने के कारण नाभि के आसपास दर्द या शूल उठते हों तो कपूर, जायफल, तथा पिसी हल्दी समान मात्रा में लेकर नाभि के आसपास मलने से दर्द शांत होता है। अपानवायु घूमने लगती है।
त्वचा रोग: त्वचा संबंधी रोगों जैसे कि खाज, खुजली, फुंसियां, खारिश में 10 ग्राम कपूर, 20 ग्राम गंधक तथा 5 ग्राम नीला थोथा लेकर सबको एक साथ पीस लें और थोड़े से सरसों तेल में मिलाकर रख लें। अब इसमें से थोड़ा-थोड़ा मिश्रण लेकर खुजली वाली जगह पर लगाएं। सर्दी हो तो इसे लगाकर थोड़ी देर धूप में बैठें। बाद में गरम पानी से धोकर साफ करें। कुछ दिन यह उपचार करने से खाज-खुजली बिलकुल दूर हो जाती है।
दाद: थोड़ा सा कपूर तथा उतनी मात्रा में गंधक लेकर थोड़े से मिट्टी के तेल में खरल करें। कुछ दिनों तक दाद पर लगाएं। भरपूर फायदा होगा।
सिरदर्द/शिरोवेदना: 5 ग्राम कपूर तथा 15 ग्राम नौसादर लेकर एक शीशी में भरें। ढक्कन बंदकर कुछ दिन रखें। सिरदर्द होने पर ढक्कन खोलकर इसे सूंघ लें। इससे सिरदर्द ठीक होने के साथ साथ सिर का भारीपन भी दूर हो जाता है।
मक्खी, मच्छर एवं जुएं: किसी गरम लोहे पर कपूर की टिकिया रखें। इसकी गंध से मक्खी एवं मच्छर भाग जाएं। नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाएं। इससे सिर की जुएं खत्म हो जाएंगी और रूसी भी ठीक हो जाएगी।
नेत्र ज्योति: गांव देहात में महिलाएं कपूर का काजल बनाती हैं जिससे नियमित सेवन से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
दांत दर्द: दांत मे दर्द हो या दांत में छेद हो तो उस स्थान पर कपूर भर दें। इससे आराम मिलेगा।
(प्रेमपाल शर्मा की किताब शुद्ध अन्न स्वस्थ तन से साभार। ये किताब प्रभात प्रकाशन से मंगाई जा सकती है)
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